एसएससी परीक्षा के लिए करेंट अफेयर्स (Hindi Current Affairs) 24 October, 2013

एसएससी परीक्षा के लिए करेंट अफेयर्स (Hindi Current Affairs)

24 अक्टूबर 2013

अब आधार कार्ड से खुल जाएगा आपका बैंक खाता

  • आधार में एक नए फीचर के समावेश के बाद अब कार्डधारक बिना किसी कागजी कार्रवाई के बैंक खाता खुलवा सकेंगे। भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) ने आधार में यह नई विशेषता जोड़ी है। इससे इलेक्टानिक आधारित बैंकिंग प्रणाली को बढावा मिलेगा|
  • यूआईडीएआई के प्रमुख नंदन नीलेकणि ने इस सुविधा का जिक्र करते हुए कहा कि कोई भी व्यक्ति बैंक शाखा में जाकर अपना 12 अंक का आधार नंबर बताएगा और वह बैंक से बाहर बैंक खाताधारक बन कर निकलेगा।
  • उन्होंने कहा कि बैंक अधिकृत सेवा एजेंट के जरिये यूआईडीएआई से जुड़ेगा, जो उसे यूआईडीएआई डेटाबेस से जोड़ेगा।
  • नीलेकणि ने बताया कि ग्राहक को बैंक शाखा को सिर्फ अपनी उंगलियों की छाप देनी होगी। उन्होंने कहा कि यह सुविधा दस्तावेजों की प्रतियां देने की तुलना में अधिक सुरक्षित है।
  • यूआईडीएआई का गठन चार साल पहले किया गया था। अभी तक उसने 46 करोड़ आधार नंबर जारी कर दिए है। अगले साल के शुरू तक इसे 60 करोड़ पर पहुंचाने का लक्ष्य है।

कैंसर ट्यूमर की स्टेम कोशिकाओं को नष्ट करने वाले प्रोटीन एसएफआरपी-4 की खोज

  • भारतीय मूल के एक आस्ट्रेलियाई वैज्ञानिक प्रो. अरुण धर्मराजन (Professor Arunasalam Dharmarajan) ने सिक्रेटेड फ्रिजल्ड रिलेटिड प्रोटीन-4 (SFRP-4एसएफआरपी-4) नामक प्रोटीन की खोज की. यह प्रोटीन कैंसर ट्यूमर की स्टेम कोशिकाओं को नष्ट कर देता है और उन्हें फिर से विकसित होने से रोकता है. इसकी जानकारी 18 अक्टूबर 2013 को दी गई.
  • शोध परीक्षणों में पाया गया कि यह प्रोटीन सिक्रेटेड फ्रिजल्ड रिलेटिड प्रोटीन-4 (एसएफआरपी-4) कैंसर की स्टेम कोशिकाओं को कीमोथेरैपी के प्रति अधिक संवेदनशील और इससे उन्हें नष्ट करने में काफी मदद मिली.
  • रिपोर्ट के अनुसार जब प्रोटीन को उपलब्ध दवाओं के साथ इस्तेमाल किया गया तो ट्यूमर के आकार को घटाने में इसके परिणाम दोगुने प्रभावी थे.इसी प्रकार के परिणाम सिर, गर्दन, स्तन, गर्भाशय, प्रोस्टेट तथा अन्य प्रकार के कैंसर के उपचार में प्राप्त किए जा सकते हैं.

34 सालों में दिखेगा क्लाइमेट चेंज

  • ग्लोबल वार्मिग के नतीजे पृथ्वी पर आए दिन की प्राकृतिक आपदाओं और मौसम में परिवर्तन के रूप में नजर आने ही लगे हैं। लेकिन अगले सिर्फ 34 सालों में पर्यावरण में इतने भीषण बदलाव देखने को मिलेंगे जिनकी अभी कल्पना करना भी मुश्किल है।
  • इस वक्त में प्राकृतिक आपदाओं का स्वरूप अधिक भीषण और विकराल होने वाला है।
  • प्राकृतिक आपदाओं का विकट रूप सबसे अधिक कटिबंधीय क्षेत्रों में सबसे अधिक दिखेगा।
  • विषवत रेखा के दोनों तरफ आने वाले क्षेत्रों में आने वाले इलाके सबसे अधिक प्रभावित होंगे।
  • हवाई यूनिवर्सिटी के प्रमुख शोधकर्ता कैमिलो मोरा ने ताजा अध्ययन के निष्कर्षो के आधार पर बताया कि ग्लोबल वार्मिग के खराब नतीजे के तौर पर दुनिया भर के मौसमों में अमूल-चूल परिवर्तन में अब अधिक समय शेष नहीं है।
  • क्लाइमेट चेंज या क्लामेट शिफ्ट का भीषण संकट हमारी यही पीढ़ी अपने आखों से देख सकेगी।
  • उन्होंने कहा कि अन्य अध्ययनों में शोधकर्ता इस विभीषिका के आने अब तक एक सदी यानी वर्ष 2100 तक का वक्त लगना बताते रहे हैं।
  • लेकिन विश्व का तापमान तेजी से बढ़ने से हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। लिहाजा उससे जनित प्राकृतिक आपदाएं भी वक्त के साथ और विकराल होती जाएंगी। ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के मौजूदा स्वरूप को देखते हुए वर्ष 2047 तक पूरी पृथ्वी पर मौसम इतना अधिक बदल चुका होगा जितना इतिहास में कभी भी दर्ज नहीं किया गया।
  • अगर जीवाश्म ईंधन जैसे पेट्रोलियम पदार्थो के उपयोग से पैदा होने वाली ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में किसी हद तक कमी की जा सकी तो क्लाइमेट चेंज की ये विभीषिका वर्ष 2069 तक पीछे खिसक सकती है।
  • वैज्ञानिक अब प्रलयंकारी मौसम के उस छोर के आने के साल को पहचानने की कोशिश कर रहे हैं जो वायु और समुद्र की सतह के तापमान से निर्धारित होता है।
  • इसके अलावा इसका निर्धारण वर्षा और समुद्र व महासागरों में अम्लीय जल की मात्र से निर्धारित होगा।
  • साइंस ग्लोबल इकोलाजी डिपार्टमेंट ऑफ कारनेज इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक केन क्लैडेला के मुताबिक मौसम में बदलाव बहुत जल्द होने वाले हैं।
  • इसकी सबसे जल्द और बुरा असर कटिबंधीय (ट्रापिकल) क्षेत्रों में होने वाला है।
  • कटिबंधीय इलाकों में ही पृथ्वी की सबसे अधिक जैव विविधता है। मनुष्यों की आबादी इसी इलाके में सर्वाधिक है। यहीं सबसे अधिक खाद्यान्न पैदा है। इसके अलावा, वनस्पति से लेकर जीव-जंतुओं तक के मामले में विषवत रेखा से कर्क रेखा और दक्षिणी गोलार्ध में विषवत रेखा से मकर रेखा तक के इलाके सबसे अधिक समृर्ध हैं।
  • ऐसे में किसी भी प्राकृतिक आपदा से इनका विलोप होना शुरू हो जाएगा। कटिबंधीय इलाकों में ये प्रलयंकारी स्थिति धरती के अन्य स्थानों से तकरीबन दस साल पहले ही आ जाएगी।
  • वर्ष 2050 से पहले ही इन इलाकों में कम से कम विकासशील देशों की एक अरब से अधिक आबादी प्रभावित होगी।
  • करीब 5 अरब लोगों को अपनी संपलि और धन से हाथ धोना पड़ेगा।
  • सह शोधकर्ता रायन लागमैन के अनुसार इससे खाद्यन्न और जल आपूर्ति बाधित होने के साथ ही मानव जाति को महामारियों का सामना करना पड़ेगा।
  • अगर ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन सामान्य रूप से चलता रहा तो भी क्लाइमेट चेंज की विभीषिका का सामना इंडोनेशिया के मानोक्वारी को 2020 में, नाइजीरिया के लागोस को 2029 में, मेक्सिको सिटी को 2031 में, आइसलैंड के रेकजेविक को 2066 में अमेरिकी क्षेत्र के अलास्का के एंकोरेज को 2071 में करना पड़ेगा।
  • क्लाइमेट शिफ्ट या क्लाइमेट डिपारचर (मौसम पूरी तरह बदलने) की प्रक्रिया अतिवादी मौसम के पिछले 150 साल के रिकार्डो के हमेशा के लिए टूटने पर बनती है।
  • इस अवधि में उपलब्ध मौसम के तथ्यपरक आकड़े ही उस मौसम का पैमाना बन जाते हैं।
  • मौजूदा वातावरण में कार्बनडाइआक्साइड गैस की मात्र हर दस लाख घन हवा में 400 तक है जोकि 2100 तक 936 हो जाएगी। इस सदी के अंत तक विश्व का तापमान 3.7 डिग्री बढ़ जाएगा।

दैनिक करेंट अफेयर्स संग्रह (Archive) के लिए यहां क्लिक करें